• लेखकों के लिए
  • पूर्व समीक्षित
  • अन्तरजाल पर साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली
  • ISSN 2292-9754
  • वर्ष: 21, अंक 259, अगस्त द्वितीय अंक, 2024
  • साहित्य कुञ्ज के बारे में
  • संपादकीय सूची
  • संपर्क करें
  • लॉगआउट करें
  • भारतीय साहित्य में अनुवाद की भूमिका
  • साहित्यिक आलेख

भारतीय साहित्य की मूलभूत अवधारणा भारत में प्राचीन काल से विकसित और पल्लवित विभिन्न भाषाओं के सामूहिक स्वरूप से उत्पन्न हुई है। भारत उपमहाद्वीप शताब्दियों से गौरवशाली समुन्नत सभ्यता और संस्कृति का केंद्र रहा है। विश्व मनीषा सदैव भारतीय चिंतन परंपराओं, साहित्य बोध तथा दार्शनिक पद्धतियों के प्रति विस्मयपूर्ण आदर का भाव प्रदर्शित करती रही है। भारतीय चिंतन परंपरा में एक प्राचीन काल से वैश्विक दृष्टि समाहित रही है जिसके अंतर में समूची मानव जाति के कल्याण की चेतना मौजूद रही है। इसी कारण भारत भूमि सदा से ही हर प्रकार के वैविध्य को आत्मसात करने में न केवल उदार रही है बल्कि हर उस नवीनता को स्वीकार कर उसके सर्वांगीण संवर्धन में सकारात्मक भूमिका निभाई है। भारत की यह समवेती और समावेशी प्रवृत्ति ही इसे अन्य सभ्यताओं और संस्कृतियों से भिन्न और विशिष्ट बनाती है। यह इस भूमि की ही महिमा है कि यहाँ युगों-युगों से असंख्य जातियाँ अपनी धार्मिक आस्थाओं, सांस्कृतिक विशिष्टताओं, सामाजिक रूढ़ियों और राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को साथ लिए, सुरक्षित रहते हुए विकास के मार्ग प्रशस्त करती रहीं। संसार में ऐसी मिसाल कहीं नहीं मिलेगी जहाँ इतनी जातियाँ, भाषाएँ, संस्कृतियाँ और धार्मिक आस्थाएँ एक साथ पुष्पित और पल्लवित हो रहीं हों।

सन् 1947 में जब भारत का उदय एक राष्ट्र के रूप में हुआ, कुछ इतिहाकारों ने इस राष्ट्र को 'एक अस्वाभाविक राष्ट्र' कहा, क्योंकि अकल्पनीय बहुभाषिकता और संस्कृति बहुलता का ऐसा नमूना संसार में अन्य किसी भी राष्ट्र की संरचना में दिखाई नहीं देता।

बहु-भाषिकता, संस्कृतिबहुलता और सैद्धान्तिक विभिन्नता, भौगोलिक जटिलता आदि स्वतंत्र भारत की विशिष्टताएँ हैं जो अन्यत्र दुर्लभ हैं। इतनी विभिन्नता के बावजूद इस देश का लोकतांत्रिक सह-अस्तित्व का स्वरूप निश्चित ही बाहरी दुनिया के लिए विस्मय और ईर्ष्या का कारण हो सकता है। भारत की बहुभाषिकता, इस राष्ट्र की अस्मिता और शक्ति है। इसकी विविधता में एक अंतर्लीन सांस्कृतिक समन्वय की ऊर्जा निहित है जो कि अनेकता में एकता की संचेतना को व्याप्त करने में सहायक है। वैविध्यपूर्ण सांस्कृतिक बहुलता के साथ लोगों के आचार-विचार-व्यवहार, धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन के अंतर्विरोध, सामाजिक रूढ़ियों और राजनीतिक विचार धाराओं के अंतर मंथन की प्रक्रिया यहाँ निरंतर गतिमान रही है। यही इस देश की बहुभाषिक संस्कृति की विशिष्टिता है।

भारतीय साहित्य - शब्द भारत की सभी भाषाओं में लिखित और मौखिक साहित्य के भंडार को कहा जाता है। संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं का साहित्य सम्मिलित रूप से भारतीय साहित्य है। यह एक समुच्चय है जो कि सभी भारतीय भाषाओं में रचित साहित्य का समेकित रूप है। भारतीय समाज को चित्रित करने वाला साहित्य ही भारतीय साहित्य है। केवल भाषापरक ही नहीं बल्कि इसकी पहचान इसके भारतीय सामाजिक सरोकार से बनी है। हर वह साहित्य भारतीय समाज के राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और आंचलिक पक्ष को उजागर करता है, वह भारतीय साहित्य कहलाने का हकदार है । भारतीयता को उसके समूचेपन के साथ प्रस्तुत करने वाला साहित्य ही भारतीय साहित्य हो सकता है इसलिए विदेशों में भारतीय स्थितियों और समाज की अंतश्चेतना को प्रस्तुत करने वाला साहित्य भी भारतीय साहित्य की श्रेणी में स्थान प्राप्त करता है। केवल संविधान में उल्लिखित भाषाएँ ही नहीं वरन अन्य भारतीय बोलियों और उपभाषाओं में रचित साहित्य भी भारतीय साहित्य के दायरे में आता है।

भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में अंग्रेज़ी भाषा का उल्लेख नहीं है किन्तु भारतीय लेखकों द्वारा रचित अंग्रेज़ी साहित्य, भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग है। भारतीय रचनाकारों के द्वारा रचित अंग्रेज़ी साहित्य की अपनी एक विशिष्ट पहचान है और इसे विश्व स्तर पर लोकप्रियता प्राप्त है। इस तरह भारतीय साहित्य के अंतर्गत भारतीय भाषाओं के साथ साथ भारतीय अंग्रेज़ी साहित्य भी शामिल हो गया है।

"भारतीय साहित्य की आधारभूत भारतीयता या एकता से परिचित होना तभी संभव होता है जब हम उसे अनेकता या भारतीय साहित्य की विविधता के संदर्भ में समझने का प्रयत्न करते हैं। पश्चिमी विचारधारा प्रत्येक समस्या को द्वि-आधारी प्रतिमुखता में बादल देती है और इसके विपरीत भारतीय मन जीवन की साकल्यवादी दृष्टि में विश्वास करता है और परिणामत: एकता-अनेकता जैसे विरुद्धों के समूह को एक दूसरे के संपूरक के रूप में स्वीकार करना सहज हो जाता है और स्थानीय, प्रांतीय तथा सर्व-भारतीयता तथा राष्ट्रीय अस्मिता में एक सजीव संबंध स्थापित करना संभव हो पाता है। भारतीय साहित्य अपनी एकता में विविधता को अंगीकार करते हुए प्रदर्शित करता है और यही विश्व को भारत की देन है। अनेकता से एकता की ओर ले जाने वाला यह मॉडल भारत की अनन्यता है।" 1

भारतीय साहित्य भाषिक बहुवचनीयता के साथ ही एक मूलभूत ऐक्य के तत्व को धारण किए हुए है, यह एक निर्विवाद सत्य है। भारतीय साहित्य की मूलभूत्त एकता को प्रामाणित करने के लिए अनेकों ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक साक्ष्य मौजूद हैं। भारतीय साहित्य की एकता को प्रमाणित करने के उद्देश्य से सन् 1954 में साहित्य अकादमी की स्थापना हुई। डॉ. सर्वेपल्ली राधाकृष्णन ने तब कहा कि भारतीय साहित्य एक है यद्यपि वह बहुत-सी भाषाओं में लिखा जाता है। (Indian literature is one though written in many languages.) डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी ने अपनी पुस्तक लेंगवेजेज़ एंड लिटर्रेचर्स ऑफ इंडिया में भारतीय साहित्य के लिए 'बहुवचन' शब्द का प्रयोग किया है।

साधारणतया भारतीय भाषाओं का उल्लेख हम एकवचन में करते हैं परंतु जब भारतीय भाषाओं की बात की जाती है तब बहुवचन का प्रयोग होता है। भारतीय साहित्य में हमें विषय वस्तु की एकता मिलती है और शैली की विभिन्नता भी और साथ ही सांस्कृतिक विशिष्टताओं का एक वैविध्यपूर्ण संसार के साथ-साथ साहित्यिक परंपराओं के अपार उदाहरण। लेखकों द्वारा लगातार यह सिद्ध किया जाता रहा है कि भारत एक वैविध्यमय देश है जो बहुत सी जातियों, सभ्यताओं, प्रदेशों, धर्मों तथा भाषाओं का समाहार है। इसके किसी एक हिस्से का आविष्कार दूसरे हिस्से की खोज के लिए हमे रास्ता दिखाते हैं (हिंदी का भक्ति काव्य हमें अंतत: तमिल आलवारों तक पहुँचा देता है) और इस तरह एक संपूर्ण भारत का पता लगता है। जब हम मध्ययुगीन भक्ति साहित्य का उदाहरण लेते हैं, तब हम देखते हैं कि यह सर्वभारतीय घटना 6-7वीं शती में तमिल के आलवारों द्वारा घटित होकर कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान में प्रसारित होते हुए 13-14वीं शती में कश्मीर तक फैल जाती है, और 15-16वीं शती तक मध्य देश को अपने घेरे में ले लेती है। श्री चैतन्य के फलस्वरूप भक्ति के इस रूप का नवरूपण होता है और बंगाल, असम तथा मणिपुर में इस आंदोलन का प्रसार होता है। यह एक क्रान्ति थी, नवजागरण था जिसने भक्तों की कल्पना को झंझा की तरह झकझोर किया। भक्ति साहित्य में अलग-अलग भाषाओं का प्रयोग हुआ है, इसमें अनेक सांस्कृतिक विशिष्टताओं की अभिव्यक्ति विद्यमान है। विभिन्न भाषाओं में रचित इस साहित्य में मौजूद विविधता के बावजूद एक आम विश्वास, आस्था, मिथक तथा अनुश्रुतियाँ इनमें विषयवस्तु की एकता को दर्शाती हैं। इसी क्रम में आधुनिक काल के नवजागरण का उदाहरण भी लिया जा सकता है। वैज्ञानिक बुद्धिवादिता, व्यक्ति स्वाधीनता तथा मानवतावाद 14वीं शती के यूरोपीय नवजागरण की विशेषताएँ थी। भारत में समय की माँग के अनुसार इनके स्थान पर राष्ट्रवाद, सुधारवाद तथा पुनरुत्थानवाद का प्रसार हुआ। एक ही विषय वस्तु - समाज सुधार को लेकर भारत की विभिन्न भाषाओं में पहला उपन्यास लिखा गया। तमिल में सैमुअल वेदनायकम पिल्लई, तेलुगु में कृष्णम्मा चेट्टी, मलयालम में चंदु मेनन, हिंदी में लाला श्रीनिवास दास, बांग्ला में मेरी हचिन्सन के उपन्यास की विषयवस्तु में समाज सुधार की ही प्रमुखता है। वस्तुत: इन्हीं सब कारणों से यह निष्कर्ष लिया जा सकता है कि कोई भी एक भारतीय साहित्य एक - दूसरे भारतीय साहित्य से कहीं न कहीं जुड़ा हुआ है अतएव भारतीय साहित्य का कोई भी अध्ययन एक साहित्य के संदर्भ में अध्ययन के प्रति न्याय नहीं कर सकता। इन सारी विविधताओं का समाधान 'अनुवाद' के माध्यम से ही संभव है। भारतीय साहित्य की भाषिक विविधता को दूर करने में 'अनुवाद' की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।

भारतीय साहित्य की अवधारणा भाषा साहित्य के समीकरण पर आधारित नहीं क्योंकि यहाँ बहुत सी भाषाएँ हैं। हमारी बहुभाषिक स्थिति में एक लेखक बहुत सी भाषाओं में लिखता है। इसीलिए भारतीय साहित्य को किसी एक भाषा से संबद्ध करके उसे चिह्नित नहीं किया जा सकता। जब कोई भारतीय साहित्य की बात करता है तब एक भौगोलिक क्षेत्र और राजनीतिक एकता की बात उठती है। भौगोलिक क्षेत्र की अपेक्षा भारतीयता का आदर्श हमारे लिए ज़्यादा आवश्यक है। "पंडित नेहरू कहते थे, यह एक नेशन स्टेट नहीं है मगर एक राष्ट्र निर्मिति की स्थिति में है। रवीन्द्रनाथ कहते थे कि हमारा राष्ट्र मात्र भौगोलिक सत्ता नहीं, मृण्मय नहीं। वह एक विचार का प्रतीक है, वह चिन्मय है। हमारा राष्ट्रवाद हमारे प्राचीन आदर्शों तथा गांधीजी द्वारा प्रस्तुत बहुलवाद, आध्यात्मिक परंपरा, सत्य और सहिष्णुता के विचारों तथा नेहरू के समाजवादी तथा अपक्ष ग्रहण (non-alignment) के विचारों पर आधारित है। और सबसे बड़ी बात हमारे साहित्य की अवधारणा जनता तथा साहित्य के संपर्क की पहचान पर आधारित है। वस्तुत: भारत के साहित्य को केवल भाषा, भौगोलिक क्षेत्र और राजनीतिक एकता से ही पहचाना नहीं जाता मगर कहीं अधिक उस देश की जनता के आश्रय से पहचाना जाता है।" 2

भारतीय साहित्य की मूलभूत एकता :

भारतीय साहित्य भारतीय जनता की स्मरणीय अभिव्यक्तियों का समाहार है। यह सत्ता राजनीतिक अनिवार्यता से नहीं बल्कि समुदाय और समुच्चय की भावना से निर्धारित हुई जो भावना सदियों से हमारे भीतर मौजूद है। समुदाय की भावना से प्राप्त शक्ति भारतीय जनता और उसके क्रिया कलापों को समायोजित करती है और इसीलिए भारतीय साहित्य में लोक और शास्त्र का अनुशासन, आदर्श की अभिव्यक्ति और लोक की चुनौती और लोक से प्रेरित त्रासदी की अभिव्यक्ति सभी इकट्ठे दिखाई पड़ते हैं। समुदाय की यह भावना न तो उपनिवेशवाद की प्रतिक्रिया है और न ही राष्ट्रीय आंदोलन का परिणाम। यह एक सार्वकालिक यथार्थ है।

भारतीय साहित्य का विचार भारत की बहुभाषिकता का स्वाभाविक परिणाम है। भारतीय साहित्य की एकता भाषागत एकता नहीं, विचारों और भावनाओं की एकता है। भारतीय साहित्य की संचलित भारतीयता का प्रमाण उसके बहुलवादी संदर्भ में ही मिलता है। विविधता का यह स्वरूप जो एकता की ओर हमें ले जाता है भारत के लिए एक आदर्श नमूना है और यह एकता जैसा कि कहा गया है भाषिक नहीं, वैचारिक है। उदाहरणतया - अशोक के शिलालेख कई बोलियों में उपलब्ध हैं परंतु उनमें एक ही बौद्ध धर्म के आदर्श विचारों की अभिव्यक्ति हुई है। कालिदास के नाटक शकुंतला में संस्कृत के अतिरिक्त शौरसेनी, महाराष्ट्री तथा मागधी प्राकृत का प्रयोग हुआ है परंतु एक ही वैचारिक दर्शन की अभिव्यक्ति हुई है और वह यह कि मनुष्य के लिए सांसारिकता से ही आध्यात्मिकता तक की यात्रा संभव हो पाती है। विद्यापति ने अपने काव्यागत विचार अवहट्ट, संस्कृत और मैथिली में प्रस्तुत किए हैं। और गुरुग्रंथ साहिब एक बहुभाषिक कृति है जिसमें एक ही सत् की अभिव्यक्ति हुई है। इस तरह भारत में विभिन्न भाषाओं के आश्रय से एक साहित्यिक संसार की रचना हुई है। इस देश में हर प्रकार की विविधता, भाषिक और गैरभाषिक के बावजूद पिछले एक हज़ार वर्षों में रूपकों, बिंबों, मिथकों अनुश्रुतियों, परिपाटियों, नियमों का एक जैसे निकाय का विस्तार हुआ है और परिणामत: विभिन्न भाषाओं के साहित्य का एक दिशा से दूसरी दिशा में अभिसरण संभव हो पाया है जैसे कि एक परिवार की भाषाओं का होता है। भारतीय साहित्य अनेकों भाषाओं में अभिव्यक्त भारत की सामाजिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक परिस्थितियों एवं तद्जनित परिणामों का वृहद कोष है। इन भाषाओं में रचित विपुल साहित्य के परस्पर आदान-प्रदान के लिए एक भाषिक उपकरण की आवश्यकता होती है। 'अनुवाद' ही वह उपकरण, औज़ार तथा माध्यम है जिससे भारतीय साहित्य की विपुल धरोहर और समकालीन रचनाशीलता को एक दूसरे के सम्मुख रखा जा सकता है। भारतीय साहित्य को एकभाषिक संप्रेषणीयता की स्थिति से अनुवाद के माध्यम से द्विभाषी अथवा बहुभाषी संप्रेषणीयता की स्थिति में लाया जा सकता है। 'अनुवाद' ही वह माध्यम है जो अंतरभाषिक साहित्यिक संवाद स्थापित करने में सक्षम है। साहित्य के दोनों रूपों पर जब चर्चा की जाती है तब सृजनशील साहित्य (गद्य और पद्य, आलोचनात्मक साहित्य) और ज्ञानात्मक साहित्य (समाज विज्ञान, मानविकी, विज्ञान, प्रबंधन, जनसंचार, व्यापार-वाणिज्य, विपणन, प्रौद्योगिकी आदि का साहित्य) का संदर्भ अनुवाद के दो वृहद क्षेत्रों को लेकर उपस्थित होता है। दोनों ही क्षेत्रों में अनुवाद की व्यापक संभावनाएँ निहित हैं। अनुवाद ही भाषिक विभिन्नता और अलगाव को दूर करने की क्षमता रखती है।

भारतीय भाषाओं में रचित साहित्य के अक्षय भंडार के अंतरभाषिक रूपान्तरण के लिए अनुवाद की प्रक्रिया ही एक मात्र उपाय है। 'अनुवाद' के द्वारा ही विभिन्न भाषाओं के मध्य मौजूद संप्रेषण के गतिरोध को तोड़ा या मिटाया जा सकता है। इस दृष्टि से अनुवाद एक अपरिहार्य उपकरण है जिससे भारतीय साहित्य में वर्णित विषय वस्तु और उसके भाव सौंदर्य का आस्वादन किया जा सकता है।

स्रोतभाषा की पाठ - सामग्री को लक्ष्यभाषा की समानान्तर पाठ सामग्री से प्रतिस्थापन ही अनुवाद है (कैटफर्ड)। अनुवाद के प्रकारों में साहित्यिक अनुवाद का विशेष स्थान है। इस वर्ग के अनुवाद के अंतर्गत साहित्यिक पाठ का स्रोतभाषा से लक्ष्यभाषा में भाषिक रूपान्तरण किया जाता है। अनुवाद में लक्ष्यभाषा के पाठ के अर्थ की प्रधानता महत्वपूर्ण है।

अनुवाद प्रक्रिया में अर्थ प्राण तत्व है। अनुवाद की समूची प्रक्रिया अनूद्य एवं अनूदित पाठ के अर्थ-सामीप्य को सार्थक बनाने की है। इसीलिए अनूद्य पाठ के अर्थ की तुलना अनूदित पाठ के अर्थ से की जाती है। अनुवाद में अनूद्य (स्रोत भाषा पाठ) और अनूदित(लक्ष्य भाषा) पाठ के अर्थ में सामंजस्य और निकटता अनिवार्य है। अनूदित पाठ में मूल पाठ से अर्थ विचलन, अर्थ संकोच और अर्थ विस्तार स्वीकार्य नहीं होता, अर्थात अनूदित पाठ में मूल पाठ का ही अर्थ ध्वनित होना चाहिए। साहित्यिक अनुवाद की समस्याएँ साहित्येतर अनुवाद की समस्याओं से अनेक अर्थों में भिन्न होती हैं। भारतीय साहित्य के अनुवाद का अर्थ, भारत की विभिन्न भाषाओं में रचित साहित्य के सभी विधाओं के पाठ का अनुवाद है। यदि अनूदित पाठ में स्रोत भाषा के पाठ का अर्थ अक्षुण्ण हो और यदि प्रभाव की दृष्टि से वह मूल के निकट तथा अनुरूप हो तो अनूदित पाठ भी मौलिक पाठ की ही तरह पाठकों को आकर्षित करेगा। रवीन्द्रनाथ ठाकुर को उन्हीं के द्वारा बांग्ला से अंग्रेज़ी में अनूदित 'गीतांजलि' के पाठ के लिए 'नोबल पुरस्कार' (1913) प्राप्त हुआ था। अनुवाद की शक्ति अपरिमेय और अजेय होती है। भारतीय साहित्य में कुछ कालजयी कृतियों के अनूदित संस्करण मूल कृति का विश्वास दिलाती हैं। जैसे शरतचंद्र कृत देवदास, चरित्रहीन और श्रीकांत, बिराजबहू, बंकिमचन्द्र का आनंदमठ, रवीन्द्रनाथ ठाकुर का गोरा और महाश्वेता देवी कृत जंगल के दावेदार आदि कृतियों के अनूदित पाठ प्रामाणिक अनुवाद के उदाहरण हैं।

भारतीय साहित्य के अनुवाद की आवश्यकता :

  • सांस्कृतिक चेतना को जागृत करने के लिए
  • देश में सांस्कृतिक एकता का प्रचार करने के लिए
  • राष्ट्रीय चेतना जागृत करने के लिए
  • देशवासियों में विभिन्न प्रान्तों और भाषाओं के प्रति सजगता तथा संवेदना उत्पन्न करने के लिए
  • विभिन्न भाषा समुदायों के मध्य भावनात्मक एकता विकसित करने के लिए
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए
  • विभिन्न प्रदेशों के सामाजिक संस्कार एवं लोक संस्कृति के ज्ञान के लिए
  • भारतीय साहित्य में निहित मूलभूत एकता के तत्वों से अवगत कराने के लिए
  • भारतीय साहित्य में निहित गौरवशाली साहित्यिक परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए
  • वर्तमान संदर्भ में प्रांतीय विभेदों को दूर करने के लिए
  • समाज के विभिन्न सामाजिक वर्गों में स्नेह, सौमस्य और सौहार्द्र के भाव को विकसित करने के लिए।

भाषा संस्कृति की वाहिका होती है। अनुवाद प्रक्रिया में स्रोतभाषा के साहित्य के सांस्कृतिक तत्वों का लक्ष्यभाषा में रूपांतरण होता है। इस तरह 'अनुवाद' सांस्कृतिक आदान-पदान की प्रक्रिया को सम्पन्न करती है। भारतीय साहित्य के अंतरभाषिक अनुवाद से देश में सांस्कृतिक आदान-प्रदान तथा सांस्कृतिक एकता के प्रचार को प्रभावी बनाया जा सकता है। भारतीय साहित्य में विभिन्न प्रान्तों की सामाजिकता और संस्कृति बोध के साथ साथ लोक संस्कृति भी व्यक्त होती है। अनुवाद के माध्यम से विभिन्न प्रान्तों की सामाजिक, आर्थिक स्थितियों के प्रति देश के अन्य क्षेत्रों के लोगों में विशेष संवेदना और भावनात्मक लगाव पैदा होता है। राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक बोध उत्पन्न करने के लिए भारतीय साहित्य का अनुवाद इस प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने में सहायक सिद्ध होगा। देशवासियों में ह्रासोन्मुख राष्ट्रीय चेतना विकसित करने के लिए विभिन्न भाषाओं में रचित भारतीय साहित्य को अनुवाद द्वारा उपलब्ध कराना आवश्यक है। आज का युग विभेदों और विखंडन का युग है। सारा देश विषम सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों से गुज़र रहा है, ऐसे में इस विखंडन और विभेदीकरण की प्रक्रिया को अनुवाद के माध्यम से भारतीय साहित्य में अंतर्निहित मानवीय संवेदनाओं और मूल्यों के प्रति जागरूकता पैदा कर मानवीय गुणों को संवर्धित किया जा सकता है। अनुवाद के माध्यम से वर्तमान युवा पीढ़ी को भारतीय साहित्य की अनमोल धरोहर से परिचय कराया जा सकता है, जिसकी आज नितांत आवश्यकता है। भारतीय साहित्य के अंतर्गत संस्कृत से लेकर आधुनिक भारतीय भाषाओं में रचित साहित्यिक परंपराएँ सम्मिलित हैं। भारतीय साहित्य में प्राचीन से वर्तमान तक, वैदिक साहित्य से लेकर समकालीन साहित्य तक गद्य-पद्य की सभी विधाएँ सम्मिलित हैं। भारतीय समाज बहुभाषिक समाज है, किसी भी व्यक्ति के लिए सभी भाषाओं का ज्ञान दु:साध्य है इसीलिए विभिन्न भाषाओं में रचित साहित्य को अनुवाद के माध्यम से ही इतर भाषा में रचित साहित्य का आस्वादन किया जा सकता है। भारत में साहित्यिक अनुवाद की स्थिति संतोषजनक नहीं है। भारत में संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त बाईस भाषाओं के प्रयोक्ता मौजूद हैं, साथ ही अनेकों बोलियों और उपभाषाओं के प्रयोक्ता भी बड़ी संख्या में देश की जनसंख्या का हिस्सा हैं। भारतीय साहित्य अंग्रेज़ी, उर्दू और फारसी के साथ-साथ संविधान में उल्लिखित सभी भाषाओं में, साहित्य की सभी विधाओं में रचा जाता है। संस्कृत साहित्य और उसके बाद पालि, प्राकृत और अपभ्रंश का साहित्य भी भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर के रूप में विद्यमान है। भारतीय भाषा समुदाय विस्तृत भौगोलिक सीमाओं में आवागमन करता है और सारा देश भारत की प्राचीन साहित्यिक संपदा से परिचित है। संस्कृत में रचित वेद, उपनिषद, आगम तथा ब्राह्मण ग्रंथ आदि अनुवाद के माध्यम से ही आज सारे भारत में हिंदी तथा इतर भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हैं। इससे संस्कृत से अनभिज्ञ पाठक वर्ग इन अमूल्य साहित्यिक ग्रन्थों से ज्ञान प्राप्त कर रहा है। संस्कृत में रचित वैदिक साहित्य और साथ ही नाना पुराण निगमागम आदि महत्वपूर्ण ज्ञान के ग्रंथ अनुवाद के द्वारा ही जनसामान्य को उपलब्ध हो सके हैं। अनुवाद के बिना ज्ञान का अंतरण इस रूप में संभव नहीं होता। भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर का अनुवाद विदेशी भाषाओं में भी हुआ है और विदेशी समाज भी प्राचीन भारतीय संस्कृत साहित्य के अनुवाद से लाभान्वित हो रहा है। भारत के वैभवपूर्ण सांस्कृतिक अतीत को विदेशी समाज अनुवाद के माध्यम से ही जान सका है।

मध्यकालीन भारतीय साहित्य का प्रचार और प्रसार अनुवाद द्वारा ही संभव हुआ है। भक्ति साहित्य और संत साहित्य जो कि विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय भाषाओं में रचा गया, अनुवाद के माध्यम से देश के कोने कोने में व्याप्त हुआ। भक्ति साहित्य का अधिकांश हिस्सा अलिखित अथवा जनश्रुति का साहित्य का है जिसकी परंपरा मौखिक है। इस प्रकार के साहित्य का प्रचार समूचे देश में विभिन्न भाषाओं में अनूदित पाठ के द्वारा ही संभव हो सका। उत्तर और दक्षिण, पूर्व और पश्चिम के संत एवं आचार्यों के द्वारा प्रतिपादित दार्शनिक सिद्धांतों का व्यापक प्रचार केवल अनूदित पाठ के माध्यम से ही विस्तृत रूप से संभव हुआ। इन सबमें वैचारिक समानता तो थी ही लेकिन भाषिक विभेद से परस्पर विचारों के आदान-प्रदान में कठिनाई थी। इसी गतिरोध को अनुवाद - प्रक्रिया के द्वारा सुलझा लिया गया । इस तरह कबीर, जायसी, सूर, तुलसी, मीरा आदि के पद मूल भाषा में रचित तथा गेय होने के साथ-साथ भारत की अन्य भाषाओं में भी उपलब्ध हुए और उतने ही लोकप्रिय हैं जितने कि मूल भाषा में। दक्षिण के अन्नमाचार्य, त्यागराय, पोतना, वेमना, आन्डाल, अक्क मादन्न, मोल्ल, अव्वैय्यार आदि के साथ आलवारों के संकीर्तन, तमिल संगम साहित्य आदि अनुवाद के माध्यम से अपनी गरिमा और महत्व को प्रतिपादित कर सके हैं। रामानुज, रामानन्द, वल्लभाचार्य, शंकराचार्य, मध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य आदि दार्शनिक आचार्यों के संदेश और उनके सैद्धान्तिक विचार अनुवाद के माध्यम से सारे भारत में ग्राह्य बन पड़े हैं। उसी प्रकार उत्तर भारत के साधु-संत और महात्माओं के संदेश भी दक्षिण में अनुवाद के माध्यम से ही पहुँच पाए हैं। उपनिषद के विचार उत्तर से दक्षिण की ओर जाकर - शंकराचार्य और रामानुजाचार्य के द्वारा अद्वैतवाद तथा विशिष्टाद्वैतवाद के रूप में प्रकट होते हैं। इसी तरह भक्ति अनुवाद के माध्यम से दक्षिण से उत्तर की ओर यात्रा करती है। कश्मीर का शैव सिद्धान्त जाकर तमिल क्षेत्र में अपना स्थान बनाता है। गांधी जी का सत्य और अहिंसा को लेकर किए प्रयोग की अनुगूँज अनुवाद के माध्यम से ही देश के कोने-कोने तक पहुँचती है। रवीन्द्र की मनुष्य और प्रकृति में सौन्दर्य की खोज सारे भारत की खोज बन जाती है। फकीरमोहन सेनापति के द्वारा उपन्यासों में सर्वप्रथम प्रसारित सामाजिक यथार्थ प्रेमचंद के द्वारा प्रयुक्त होकर सर्वभारतीय स्थान ग्रहण कर लेता है। दलित साहित्य गुजरात, महाराष्ट्र से कर्नाटक होते हुए हिंदी क्षेत्र में प्रवेश कर जाता है। इस तरह कृति और उनके लेखक एक वृहत् साहित्यिक परंपरा का हिस्सा बन जाते हैं और तब उनका भाषिक अस्तित्व राष्ट्रीयता की संवेदना के प्रसारण में बाधा नहीं बनता।

साहित्यिक के शैलीगत अनुवाद के प्रकारों में भावानुवाद, सारानुवाद, शब्दानुवाद आदि प्रमुख हैं। पद्य पाठ का सरल सारानुवाद गद्य में रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। भारतीय साहित्य के अनुवाद में सारानुवाद की प्रमुखता अधिक है। कालिदास, बाण, भास, आदि संस्कृत कवियों के महाकाव्यों और पद्य नाटकों का गद्यानुवाद तथा सारानुवाद मौलिक रचना के सारांश को सरलता पूर्वक समझने में अत्यंत उपयोगी रहा है। शेक्सपियर के नाटक जो कि सारे पद्य शैली में ही रचे गए, उनका गद्य के रूप में सारानुवाद पाठकों को शेक्सपियर के नाटकों का आस्वादन करने में उपयोगी सिद्ध हुए हैं। भारतीय साहित्य के अमूल्य धरोहर, संस्कृत में रचित रामायण और महाभारत महाकाव्यों को अधिकांश पाठक अनुवाद के माध्यम से सभी भारतीय भाषाओं में पढ़कर लाभान्वित हो रहे हैं। भगवद्गीता का मूल पाठ संस्कृत में है लेकिन संस्कृत से अनभिज्ञ पाठक अन्य भाषाओं में अनूदित पाठ पढ़कर गीता के संदेशों का सार समझकर जीवन में उनका आचरण कर रहे हैं। पद्य का अनुवाद मौलिक कृति के अनुरूप छंदबद्ध और छंदमुक्त दोनों तरह से किया जाता है।

भारतीय साहित्य की प्राचीन धरोहर अनुवाद से ही आज जीवंत है तथा समाज में भारतीय मूल्यों एवं संस्कृति के प्रति नवचेतना जागृत करने में सफल हुई है।

आधुनिक भारतीय भाषाओं में रचित पद्य साहित्य जिसमें काव्य और महाकाव्य प्रमुख हैं, इनके अनूदित पाठ भारत के इतर भाषा समुदायों के लिए महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए हिंदी में रचित प्रियप्रवास, वैदेही वनवास, कामायनी, साकेत, उर्वशी और कुरुक्षेत्र आदि महाकाव्य भारतीय भाषाओं में अनूदित हुए हैं। इस प्रकार भारतीय साहित्य की प्रमुख कृतियों रूपान्तरण इतर भाषा में उपलब्ध कराने से भारत की सांस्कृतिक अस्मिता की समरूपता का ज्ञान देशवासियों को होगा। गद्य के क्षेत्र में कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, जीवनी, आत्मकथा, निबंध आदि साहित्यिक विधाओं का अंतरभाषिक अनुवाद भारतीय साहित्य में निहित सामाजिकता को दर्शाने के लिए सहायक हुआ है। भारत की राष्ट्र भाषा और राजभाषा हिंदी है, साथ ही हिंदी क्योंकि सर्वाधिक समझी तथा बोली जाती है, इसलिए हिंदी से ही सर्वाधिक साहित्य का अनुवाद इतर भाषाओं में हुआ है। उसी प्रकार अन्य भारतीय भाषाओं से हिंदी में सर्वाधिक साहित्यिक कृतियों का अनुवाद हुआ है और यह प्रक्रिया जारी है। भारतीय साहित्य के अनुवाद की एक प्रमुख समस्या अंतरभाषिक अनुवाद की है अर्थात हिंदी के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं का साहित्य परस्पर अनूदित नहीं हो पा रहा है। इस तरह के अनुवाद की आज भारतीय समाज को आवश्यकता है। उदाहराणार्थ, हिंदी के कथाकारों में प्रेमचंद - साहित्य का अनुवाद भारत की लगभग सभी भाषाओं में उपलब्ध है। बंगाली के बंकिमचंद्र और शरतचंद्र का कथा साहित्य भी हिंदी एवं अनेक भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है। इसी तरह बंगाली के अनेक बड़े और लोकप्रिय लेखकों की रचनाएँ पद्य और गद्य दोनों विधाओं में हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में अनूदित हुई हैं। हिंदी का पाठक वर्ग अतिविशाल होने के कारण इनकी ख्याति सर्वत्र व्याप्त है। बांग्ला साहित्य की लोकप्रियता और महत्व अनुवाद के ही कारण राष्ट्रव्यापी हो सका है। क्षेत्रीय भाषाओं की मूल रचनाओं की पठनीयता उस भाषा समुदाय के आकार पर निर्भर करती है इसीलिए हिंदी का पाठक समुदाय अति विशाल होने से भारतीय साहित्य की खपत भी हिंदी पाठक वर्ग में ही अधिक है। यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है कि आज क्षेत्रीय भाषाओं में रचित साहित्य पहले हिंदी में उपलब्ध होता है। साहित्य अकादमी पुरस्कृत हिंदेतर कृतियों का अनुवाद हिंदी में तथा हिंदी की रचनाओं का सभी भारतीय भाषाओं में करवाती है।

इधर भारतीय अंग्रेज़ी रचनाकारों के द्वारा लिखित अंग्रेज़ी साहित्य बहुत लोकप्रिय हुआ है और भारतीय साहित्य में भारतीय अंग्रेज़ी लेखकों की बाढ़ सी आ गई है। चेतन भगत, अनीता देसाई, अरुंधती राय, आमिश आदि नई पीढ़ी के युवा लेखकों के उपन्यास लाखों की संख्या में पढ़े जा रहे हैं और इनके हिंदी अनुवाद भी लोकप्रिय हो रहे हैं।

भारतीय साहित्य के अनुवाद की समस्याएँ -

  • भारतीय साहित्य के अनुवाद के लिए संगठित संस्थाओं का सरकारी और
  • गैरसरकारी स्तर पर अभाव है। केवल साहित्य अकादमी सरकारी स्तर पर यह कार्य सीमित दायरे में कर पा रही है। भारतीय साहित्य की व्यापक बहुभाषिक स्वरूप के अनुरूप अनुवाद के प्रयास अत्यल्प और अपर्याप्त है।
  • भारत में स्वैच्छिक रूप से अनुवाद कार्य नहीं किया जाता है। कुछ ही अनुवादक आत्मतुष्टि के लिए अपनी अभिरुचि के अनुसार भारतीय साहित्य के अनुवाद में रुचि रखते हैं।
  • भारत में साहित्यिक अनुवाद को पर्याप्त प्रोत्साहन प्राप्त नहीं है। सरकारी और गैरसरकारी दोनों स्तरों पर साहित्यिक अनुवाद कार्य को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता और इसे व्यवसाय (प्रोफेशन) के रूप में भारत में इसे मान्यता प्राप्त नहीं है।
  • इधर कुछ प्रकाशकों द्वारा व्यापारिक दृष्टि से चुनिन्दा भारतीय साहित्य की कृतियों का अनुवाद करवाया जा रहा है लेकिन यह अपर्याप्त है। इसका उद्देश्य केवल व्यापारिक है न कि भारतीय साहित्य का संवर्धन अथवा भारतीय सांस्कृतिक चेतना जागृत करना है।
  • भारतीय साहित्य के अनूदित पाठ के प्रति जनसामान्य में अभिरुचि का अभाव।
  • भारतीय साहित्य के प्रति उदासीनता का भाव।
  • भारतीय साहित्य की संकल्पना अस्पष्ट है और अभी पूरी तरह से जनसामान्य में इसकी स्पष्ट छवि स्थापित नहीं हो पाई है।

भारत की भाषाओं के दो अस्तित्व हैं। पहला भाषिक और दूसरा सांस्कृतिक, जो भाषा को अतिक्रमित कर प्रकट होता है। यही कारण है कि फारसी और अंग्रेज़ी भाषाएँ भारतीय नहीं होने पर भी इन भाषाओं में रचित साहित्य को भारतीय साहित्य में स्थान मिलता है। भारतीय साहित्य भारतीय जनता की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति का इतिहास है। उनकी साहित्यिक परंपराओं, परिवर्तन और परिणति, उत्थान और पतन तथा पुनरुत्थान का इतिहास है।

भारतीय साहित्य की मूलभूत संकल्पना को साकार बनाने के लिए अंतरभाषिक अनुवाद प्रक्रिया को प्रभावी बनाना होगा। भारतीय जनमानस में राष्ट्रीय चेतना और सांस्कृतिक समन्वय का प्रचार करने के लिए भारतीय साहित्य को ही अनुवाद के माध्यम से सक्रिय करना होगा। भारतीय साहित्य जो कि भारत की सभी भाषाओं में रचित साहित्य का समुच्चय है, एक सम्मिलित स्वरूप है, इसे प्रत्येक भारतवासी को आत्मसात् करना होगा। भारतीय साहित्य किसी एक भाषा में रचित साहित्य की संज्ञा नहीं है बल्कि यह एक समावेशी और समेकित वृहत्तर साहित्य रूप है जो कि समूचे भारत की अस्मिता को अपने भीतर समेटे हुए है। भारतीय साहित्य की मूलभूत एकता अनुवाद के माध्यम से ही साध्य है।

1 पृ 99 तुलनात्मक साहित्य : भारतीय परिप्रेक्ष्य - इन्द्रनाथ चौधुरी 2 पृ 104 तुलनात्मक साहित्य : भारतीय परिप्रेक्ष्य - इन्द्रनाथ चौधुरी

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें, लेखक की अन्य कृतियाँ.

  • दक्खिनी का पद्य और गद्य : भारतीय साहित्य की अनमोल धरोहर 
  • नयी कविता और भवानी प्रसाद मिश्र
  • अबलाओं का इन्साफ़ - स्फुरना देवी
  • चूड़ी बाज़ार में लड़की
  • थर्ड जेंडर : हिंदी कहानियाँ
  • दर्द जो सहा मैंने
  • नवजागरण के परिप्रेक्ष्य में रवीन्द्रनाथ ठाकुर का कालजयी उपन्यास "गोरा"
  • नहर में बहती लाशें
  • पुरुष तन में फंसा मेरा नारी मन : मानोबी बंद्योपाध्याय 
  • प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन
  • फरिश्ते निकले - नारी शोषण का वीभत्स आख्यान
  • फाइटर की डायरी : मैत्रेयी पुष्पा
  • शव काटने वाला आदमी
  • साक्षी है पीपल
  • स्त्री जीवन के भोगे हुए यथार्थ की कहानी : 'नदी'
  • अज्ञेय कृत "शेखर - एक जीवनी" का पुनर्पाठ
  • कृष्णा सोबती हशमत के जामे में 
  • छायावाद के सौ वर्ष
  • निराला की साहित्य साधना और डॉ. रामविलास शर्मा
  • पुरुष के जीवन में स्त्री की पात्रता
  • प्रवासी कथा साहित्य में स्त्री जीवन की अंतर कथा
  • भारतीय सिनेमा को तेलुगु फिल्मों का प्रदेय
  • मुक्तिबोध की काव्य चेतना
  • मुड़-मुड़के देखता हूँ... ... और राजेन्द्र यादव
  • विश्व के महान कहानीकार : अंतोन चेखव
  • वैश्वीकरण के परिदृश्य में अनुवाद की भूमिका
  • सामयिक चुनौतियों के संदर्भ में नई सदी के हिंदी उपन्यास
  • स्वप्न और आत्म संघर्ष की आत्माभिव्यक्ति : "अँधेरे में"
  • हिंदी कथा-साहित्य में किन्नर स्वर 
  • अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच और सिनेमा के चहेते कलाकार सईद जाफ़री की स्मृति में
  • अपराजेय कथाशिल्पी शरतचंद्र और देवदास
  • अमेरिकी माफ़िया और अंडरवर्ल्ड पर आधारित उपन्यास: गॉड फ़ादर (The Godfather)
  • इंग्लैंड के महान उपन्यासकार चार्ल्स डिकेंस की अमर कृति "ग्रेट एक्सपेक्टेशन्स"
  • एमिली ब्राँटे का कालजयी उपन्यास : वुदरिंग हाइट्स
  • ऑस्कर वाईल्ड कृत महान औपन्यासिक कृति : पिक्चर ऑफ़ डोरिएन ग्रे
  • खेतिहर समुदायों के विस्थापन की त्रासदी : जॉन स्टाईनबैक की अमर कृति "ग्रेप्स ऑफ़ राथ"
  • गॉन विथ द विद - एक कालजयी उपन्यास और सिनेमा
  • चीन के कृषक जीवन की त्रासदी
  • टॉलस्टाय की 'अन्ना केरेनिना' : कालजयी उपन्यास और अमर फिल्म
  • डी एच लॉरेंस की विश्वविख्यात औपन्यासिक कृति : लेडी चैटरलीज़ लवर
  • तेलुगु की सर्वकालिक लोकप्रिय पौराणिक फ़िल्म ‘मायाबजार‘
  • दासप्रथा का प्रथम क्रांतिकारी विद्रोही - ‘स्पार्टाकस’
  • द्वितीय महायुद्ध में नस्लवादी हिंसा का दस्तावेज़ : शिन्ड्लर्स लिस्ट
  • फ्रांसीसी राज्य क्रान्ति और यूरोपीय नवजागरण की अंतरकथा : ए टेल ऑफ़ टू सिटीज़
  • बेन-हर (BEN-HUR) - रोम का साम्राज्यवाद और सूली पर ईसा मसीह का करुण अंत
  • बोरिस पास्टरनाक की अमर कृति 'डॉ. ज़िवागो'
  • भारतीय सिनेमा और रवीन्द्रनाथ टैगोर
  • भारतीय सिनेमा में 'समांतर' और 'नई लहर (न्यू वेव)' सिनेमा का स्वरूप
  • भूमंडलीकरण और हिन्दी सिनेमा
  • युद्धबंदी सैनिकों के स्वाभिमान और राष्ट्रप्रेम की अनूठी कहानी : "द ब्रिज ऑन द रिवर क्वाई"
  • विश्व कथा साहित्य की अनमोल धरोहर "ले मिज़रेबल्स"
  • विश्व की महान औपन्यासिक कृति ‘वार एंड पीस‘ (युद्ध और शांति)
  • शॉर्लट ब्रांटे की अमर कथाकृति : जेन एयर
  • स्त्री जीवन की त्रासदी "टेस - ऑफ द ड्यूबरविल"
  • फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की की अमर औपन्यासिक कृति "द ब्रदर्स कारामाज़ोव"
  • अरुण यह मधुमय देश हमारा
  • एक राजनैतिक कहानी
  • हिंदी फिल्में और सामाजिक सरोकार
  • हिंदी सिनेमा के विकास में फ़िल्म निर्माण संस्थाओं की भूमिका-1
  • हिंदी सिनेमा के विकास में फ़िल्म निर्माण संस्थाओं की भूमिका-2
  • हिंदी सिनेमा में स्त्री विमर्श का स्वरूप

विशेषांक में

  • Test Series
  • PREVIOUS PAPER
  • College Notes

कुशल अनुवादक के गुण

  • By Hindistack

कुशल अनुवादक के गुण | Hindi Stack

जब आप इन आवश्यक अनुवादक के गुणों को देखेंगे, तो आप समझ जाएंगे कि अधिकांश द्विभाषी महान अनुवादक क्यों नहीं बन पाते हैं।आरंभ करने के लिए, आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि कई लोग जो दूसरी भाषा बोलते हैं, और शायद अधिकांश लोग, अनुवाद के लिए आवश्यक भाषा कौशल और उसके गुण से काफी कम हैं।  हममें से कितने लोग वास्तव में बहुत अच्छे अनुवादक हैं? हाँ, एक अच्छा अनुवादक बनने के लिए हर किसी के लिए एक महत्वपूर्ण कौशल होना आवश्यक है। आख़िरकार अनुवादकों को अच्छे शब्दों वाले पाठ तैयार करने की ज़रूरत है, जिसे पढ़ने में लोगों को आनंद आएगा-सभी प्रकार की शैलियों में। जैसे विपणन भाषण, वैधीकरण, तकनीकी सामग्री, यहां तक ​​कि कई बार बोलचाल की भाषा भी। हममें से कितने लोगों के पास ऐसा करने का कौशल या गुण है।

इसके अलावा, पाठ के किसी भी हिस्से का अनुवाद करने में काफी जटिल मानसिक प्रक्रिया शामिल होती है। इसका मतलब यह है कि यदि आप संपूर्ण अनुवाद प्रक्रिया का पालन नहीं करते हैं, तो आपके अनुवादों के लगातार उत्कृष्ट होने की संभावना नहीं है। जो हमारे अंतिम आवश्यक कौशल (खैर यह वास्तव में “कौशल” नहीं है, लेकिन मुझे पता है कि आप हमें माफ कर देंगे) को पूरी तरह से सार्थक बनाता है।

गुणवत्तापूर्ण अनुवाद करने के लिए कुशल अनुवादक के गुण को समझना बेहद महत्वपूर्ण है इसके लिए हमने निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से दर्शाया है की आपको एक कुशल अनुवादक के रूप में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और किन बातों का नहीं:

  • अनुवादक को स्रोत और लक्ष्य दोनों भाषाओं का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए।
  • अनुवादक के पास अच्छे शब्दकोश होने चाहिएं। यदि प्रशासनिक/तकनीकी सामग्री का  अनुवाद किया जाना है तो संबंधित विषय विशेष से संबंधित (तकनीकी एवं पारिभाषिक शब्दावली आयोग आदि द्वारा प्रकाशित) आधिकारिक शब्दावली/शब्दकोश होना चाहिए। अत: अनुवादक को उपयोगी शब्दकोशों/शब्दावलियों का संग्रह तैयार कर लेना चाहिए
  • अनुवादक को शब्दकोशों से आवश्यकतानुसार सटीक शब्दों का चयन करने में आलस्य नहीं करना चाहिए।
  • यदि आवश्यक हो तो अनुवाद की जाने वाली सामग्री के किन्हीं शब्दों/अभिव्यक्तियों आदि के बारे में संबंधित विषय के जानकार से चर्चा कर लेनी चाहिए।
  • तकनीकी/प्रशासनिक सामग्री के अनुवाद के मामले में विषयवस्तु को संबंधित विषय विशेषज्ञ से बेहतर ज्ञान अनुवादक को नहीं हो सकता, इसलिए विषय विशेषज्ञ की विशेषज्ञता का लाभ अवश्य उठाया जाना चाहिए।
  • अनुवादक में अहं या अति-आत्मविश्वास का भाव नहीं होना चाहिए। अनुवादक दो भाषाओं रूपी किनारों को जोड़ने के लिए सेतु तैयार करने वाला इंजीनियर होता है। अनुवादक की कुशलता/सफलता सेतु की मजबूती या कमजोरी पर निर्भर करती है।
  • अनुवादक को बहुआयामी ज्ञान होना चाहिए। इसके लिए अलग-अलग विषयों की महत्वपूर्ण सामग्रियों का पठन करते हुए ज्ञानार्जन करते रहना चाहिए।
  • साहित्यिक कृति का अनुवाद करने वाले अनुवादक को मूल रचनाकार के निरंतर सम्पर्क में रहकर उसकी संतुष्टि के अनुसार अनुवाद करना चाहिए क्योंकि मूल भावों के  धरातल का ज्ञान मूल रचनाकार से बेहतर किसी को नहीं हो सकता।
  • अनुवादक को अलग-अलग विषयों/विषयवस्तुओं का अनुवाद करने वाले अन्य अनुवादकों से मित्रवत् संबंध स्थापित करने चाहिएं ताकि आवश्यकता पड़ने पर एक-दूसरे का मार्गदर्शन कर सकें।
  • अनुवादक को किसी भी विषयवस्तु की सामग्री का अनुवाद प्रारंभ करने से पूर्व (1) अनुवाद सामग्री के कितने पृष्ठ/शब्द हैं (2) अनुवाद कार्य कितने दिनों/घंटों में पूरा किए जाने की अपेक्षा की गई है (3) क्या इस सामग्री का अनुवाद करने में किसी संबद्ध विषय-विशेषज्ञ और/अथवा अनुवाद-विशेषज्ञ की आवश्यकता पड़ेगी (4) विषय/विषयवस्तु से संबंधित शब्दकोश/शब्दावली उपलब्ध है अथवा नहीं (5) प्रत्येक घंटे/दिन में कितने शब्दों/पृष्ठों का अनुवाद किया जा सकता है आदि पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कार्ययोजना तैयार कर लेनी चाहिए।
  • अनुवादक को अनुवाद कार्य करते समय गौरव का अनुभव होना चाहिए कि उसे दो भाषाओं के लोगों को जोड़ने वाले सेतु का निर्माण करने का दायित्व सौंपा गया है।
  • अनुवादक लक्ष्य भाषा के पाठक को ध्यान में रखकर शब्दों/भाषा का प्रयोग करता है।

1 users like this article.

Avatar of roushni kujur

Leave a Reply Cancel reply

Related articles.

हिंदी साहित्य का काल-विभाजन एवं विभिन्न कालों का उपयुक्त नामकरण | Hindi Stack

हिंदी साहित्य का काल-विभाजन और...

हिंदी में साहित्य का इतिहास लेखन की परम्परा | Hindi Stack

हिंदी में साहित्य का इतिहास ले...

  • Competitive Notes

हिंदी नाटक के उद्भव एंव विकास को स्पष्ट कीजिए ? | Hindi stack

हिंदी नाटक के उद्भव एंव विकास ...

हिंदी का प्रथम कवि | Hindistack

हिंदी का प्रथम कवि

सूफी काव्य की महत्वपूर्ण विशेषताएँ | Hindi Sahitya

सूफी काव्य की विशेषताएँ

राही कहानी | सुभद्रा कुमारी चौहान | Rahi kahani by Subhadra Kumari Chauhan | Hindi stack

सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानी ...

  • College Books

Latest Posts

Popular posts.

रीतिकाल की प्रमुख परिस्थितियों का विवेचन कीजिए। | Hindi Stack

रीतिकाल की परिस्थितियों का विव...

महादेवी वर्मा के काव्य में वेदना एंव करूणा की अभिव्यक्ति पर प्रकाश डालिए ? | Hindi Stack

महादेवी वर्मा के काव्य में वेद...

आदिकाल की प्रमुख परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए | Hindi Stack

आदिकाल की प्रमुख परिस्थितियों ...

शेखर एक जीवनी में विद्रोह का स्वर | Hindi Stack

शेखर एक जीवनी में विद्रोह का स...

राम की शक्ति पूजा की मूल संवेदना | Hindi Stack

राम की शक्ति पूजा की मूल संवेद...

Hindistack.com is a website that dedicates to Hindi language students. ‘Hindistack’ is an educational platform that provides free resources in the form of simple explanatory notes, videos, books, and Mock Test Series.

Subscribe to our Newsletter

To be updated with all the latest Notes, upcoming Exams and special announcements.

Voice speed

Text translation, source text, translation results, document translation, drag and drop.

dissertation ka hindi anuvad

Website translation

Enter a URL

Image translation

हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika

  • मुख्यपृष्ठ
  • हिन्दी व्याकरण
  • रचनाकारों की सूची
  • साहित्यिक लेख
  • अपनी रचना प्रकाशित करें
  • संपर्क करें

Header$type=social_icons

अनुवाद की आवश्यकता एवं महत्व.

Twitter

अनुवाद की उपयोगिता अनुवाद की आवश्यकता अनुवाद का महत्व anvaad ke mahatva लक्ष्य भाषा एवं स्रोत भाषा anuvad vigyan अनुवाद का उद्देश्य अनुवाद कार्य का आध

अनुवाद की आवश्यकता एवं महत्व

अनुवाद का उद्देश्य

अनुवाद कार्य का आधार.

dissertation ka hindi anuvad

Please subscribe our Youtube Hindikunj Channel and press the notification icon !

Guest Post & Advertisement With Us

[email protected]

Contact WhatsApp +91 8467827574

हिंदीकुंज में अपनी रचना प्रकाशित करें

कॉपीराइट copyright, हिंदी निबंध_$type=list-tab$c=5$meta=0$source=random$author=hide$comment=hide$rm=hide$va=0$meta=0.

  • hindi essay

उपयोगी लेख_$type=list-tab$meta=0$source=random$c=5$author=hide$comment=hide$rm=hide$va=0

  • शैक्षणिक लेख

उर्दू साहित्य_$type=list-tab$c=5$meta=0$author=hide$comment=hide$rm=hide$va=0

  • उर्दू साहित्‍य

Most Helpful for Students

  • हिंदी व्याकरण Hindi Grammer
  • हिंदी पत्र लेखन
  • हिंदी निबंध Hindi Essay
  • ICSE Class 10 साहित्य सागर
  • ICSE Class 10 एकांकी संचय Ekanki Sanchay
  • नया रास्ता उपन्यास ICSE Naya Raasta
  • गद्य संकलन ISC Hindi Gadya Sankalan
  • काव्य मंजरी ISC Kavya Manjari
  • सारा आकाश उपन्यास Sara Akash
  • आषाढ़ का एक दिन नाटक Ashadh ka ek din
  • CBSE Vitan Bhag 2
  • बच्चों के लिए उपयोगी कविता

Subscribe to Hindikunj

dissertation ka hindi anuvad

Footer Social$type=social_icons

Anuvad(Translation)(अनुवाद)

अनुवाद के कुछ सामान्य नियम.

अँग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद करने के पहले विद्यार्थियों को निम्नलिखित कुछ सामान्य नियमों से अच्छी तरह परिचित हो जाना चाहिए। फिर इनके आधार पर हिन्दी-अनुवाद का अभ्यास करना चाहिए। अनुवाद की निश्चित रीति बताना संभव नहीं हैं क्योंकि शब्दों की तरह वाक्यों की रचना भी अनन्त होती हैं। लेकिन निम्नलिखित बातों को ध्यान में रख कर अनुवाद का अभ्यास किया जा सकता हैं :-

(1) अँग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद करते समय अपनी भाषा की पद-संघटना तथा वाक्य-रचना की रक्षा करनी चाहिए। हिन्दी में पहले कर्त्ता, फिर कर्म और अन्त में क्रिया-पद आते हैं; जैसे-

An ideal student prepares his daily lessons . इसका अनुवाद इस प्रकार होगा- 'आदर्श छात्र (कर्त्ता) अपने दैनिक पाठ (कर्म) प्रस्तुत करता है (क्रिया)।' अँग्रेजी की वाक्य-रचना में पहले कर्त्ता, फिर क्रिया और अन्त में कर्म-पद आते हैं। अनुवाद करते समय दो भाषाओं की वाक्य-रचना के इस अन्तर को अच्छी तरह स्मरण रखना चाहिए।

(2) अनुवाद करते समय मूल भाषा में आये एकाध शब्द को छोड़ा भी जा सकता हैं। ऐसा करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि मूल वाक्य का पूरा अर्थ विकृत न होने पाये। उदाहरणार्थ,

There lived a saint, named Tukaram . It is raining . It was 6 o'clock in the morning .

इन वाक्यों के अनुवाद इस प्रकार होंगे :- तुकाराम नामक एक सन्त रहते थे। वर्षा हो रही हैं। प्रातः काल के छह बजे थे।

(3) आवश्यकतानुसार अनूदित वाक्य-विन्यास में एकाध नये शब्द अलग से जोड़े भी जा सकते हैं। इससे वाक्य-रचना में प्रवाह आ जाता हैं और वाक्य जानदार हो जाता हैं। लेकिन अपनी ओर से नये शब्दों का प्रयोग करते समय विद्यार्थियों को अधिक-से-अधिक सावधान रहना चाहिए।

ऐसा न हो कि अनावश्यक शब्दों का प्रयोग हो जाय, जैसे- What are you about ? का अनुवाद इस प्रकार होगा- 'आप किस उधेड़बुन में हैं ?' या, 'आप किस चक्कर में हैं ?' या 'आप किस सोच में पड़े हैं ?' या, 'आप किस बात में लगे हैं ?' अँग्रेजी के एक वाक्य का अनुवाद प्रसंगानुसार इन वाक्यों में किया जा सकता हैं।

(4) कभी-कभी ऐसे अवसर और स्थल भी आते हैं जब कि अँग्रेजी के कई शब्दों का अनुवाद हिन्दी के एक ही शब्द द्वारा हो सकता हैं; जैसे-

I am at loss to determine what to do . He is the black-sheep of our family . He had an apology for a meal . The old man is at the point of death .

इन वाक्यों के अनुवाद क्रमशः इस प्रकार होंगे :- मैं किंकर्त्तव्यविमूढ़ हूँ। वह हमारे वंश का कुलांगार हैं। उसने नाममात्र का भोजन किया। वृद्ध पुरुष मरणासन्न हैं।

(5) इसके विपरीत, कभी-कभी अँग्रेजी के शब्द का अनुवाद हिन्दी के कई शब्दों के प्रयोग द्वारा होता हैं। खास कर अँग्रेजी के मुहावरों और कहावतों का प्रयोग करते समय हिन्दी में बड़ी सावधानी रखनी पड़ती हैं। उदाहरणार्थ-

He talks big . He is a turn-coat . Might is right . A bad workman quarrels with his tools .

इसके अनुवाद इस प्रकार होंगे :- वह बड़ी-बड़ी बातें करता हैं। वह अपने सिद्धान्तों पर अटल नहीं रहता। जिसकी लाठी, उसकी भैंस- हिन्दी मुहावरा। नाच न जाने आँगन टेढ़।

(6) अँग्रेजी के सामासिक शब्दों (Compound words) का अनुवाद करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हिन्दी में उनके अपने शब्द हैं या नहीं। यहाँ कुछ शब्दों के हिन्दी-पर्याय दिये जा रहे हैं, जिनका प्रयोग हिन्दी अनुवाद में किया जा सकता हैं :-

Eye-sore आँखों का काँटा Spring-time वसन्त-काल New-born baby नवजात शिशु World-wide विश्वव्यापी Mean-spirited लघुचेता Sharp-sighted सूक्ष्मदर्शी Heart-rending हृदय-विदारक Lack-lustre दीप्तिहीन Globe-trotter भू-पर्यटक Pain-killer वेदना-नाशक

(7) अँग्रेजी के वाक्य-खण्डों (Clauses) का अनुवाद करते समय भी अपनी भाषा की प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। हो सकता हैं कि मूल वाक्य-खण्ड का अनुवाद हिन्दी के एक शब्द में हो जाय या अनेक शब्दों का प्रयोग करना पड़े। हर हालत में हिन्दी भाषा की प्रकृति का ख्याल करना पड़ेगा।

यहाँ कुछ उदाहरण दिया जा रहा हैं- Merits and demerits दोष-गुण Sleight of hand हस्त-कौशल Greed of money घन-लिप्सा The struggle for existence जीवन-संघर्ष Sailing in the air गगन-विहारी Dear as life प्राणप्रिय The Iron Age कलियुग A boarding house छात्रावास A man of rank प्रतिष्ठित पुरुष Absorbed in meditation ध्यान-मग्न Wild with fear भयाकुल

(8) हिन्दी-अनुवाद में सबसे बड़ी कठिनाई अँग्रेजी मुहावरों और कहावतों के रूपान्तर में होती हैं, क्योंकि अँग्रेजी में इनका अपना अर्थ होता हैं। हिन्दी और अँग्रेजी की भाषाओं में वही भेद हैं जो भेद दोनों के मुहावरों में हैं। अतः अँग्रेजी के मुहावरों का अर्थ जाने बिना उनका अनुवाद करना ठीक न होगा। सच तो यह है कि अँग्रेजी मुहावरों का हिन्दी-रूपान्तर, व्यावहारिक रूप से, सम्भव भी नहीं हैं। इसलिए यह आवश्यक हैं कि हम पहले मूल मुहावरों के अर्थ जान लें और फिर अपनी भाषा में उनसे मिलते-जुलते मुहावरे खोजें।

मुहावरों के स्थान पर मुहावरों की खोज करना एक मुश्किल काम हैं लेकिन अनुवाद में वास्तविक प्रवाह और वाक्य-रचना में ओज लाने के लिए ऐसा करना पड़ता हैं। मूल भाषा के मुहावरों का शाब्दिक अनुवाद करना एक भारी संकट मोल लेना हैं, क्योंकि शब्दानुवाद के द्वारा मुहावरों का अनुवाद असम्भव यहाँ हम अँग्रेजी के कुछ मुहावरों और कहावतों के साथ उनके हिन्दी-रूपान्तर दे रहे हैं। विद्यार्थियों को इनकी जानकारी होनी चाहिए :-

मुहावरे (Idioms)

The time is up समय हो गया।
He went to the next world उसका परलोकवास हो गया।
He is undone उसका सर्वनाश हो गया।
He saw the light in 1870 सन् १८७० में उसका जन्म हुआ।
He is laughing in the sleeve वह मन-ही-मन हँस रहा हैं।
All things were at sixes and sevens सभी चीजें तितर-बितर हो रही थीं।
He pocketed the insult उसने चुपचाप अपमान सहन कर लिया।
It is really a Herculean task यह वास्तव में बड़ा कठिन काम हैं।
He calls a spade a spade वह उचित (यथार्थ) वक्ता हैं।
I am out of pocket मेरा हाथ खाली हैं।
He moved heaven and earth इस काम के लिए उसने आकाश-पाताल एक कर दिया।
All is well that ends well अन्त भला तो सब भला।

कहावतें (Proverbs)

Many a little makes a nickle बूँद-बूँद तालाब भरता हैं।
To give tit for tat मुँहतोड़ जवाब देना; जैसे को तैसा।
A bird in hand is worth two in the bush नौ नगद न तेरह उधार।
An idle mans brain is the workshop of the devil खाली मन शैतान का अड्डा।
Birds of the same feather flock together चोर-चोर मौसेरे भाई।
To be pure, everything is pure मन चंगा तो कठौती में गंगा।
As we sow, so we reap जैसी करनी, वैसी भरनी।
Might is right जिसकी लाठी उसकी भैंस।
Distance lends enchantment to the view दूर का ढोल सुहावन; घर का जोगी जोगड़ा बाहर का सिद्ध।
To cast pearls before swine बन्दर के हाथ में नारियल; बन्दर क्या जाने आदी का स्वाद ?
Where there is a will, there is a way जहाँ चाह, तहाँ राह।
To break a bruised reed जले पर नमक छिड़कना।
It was a nine days wonder चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।
It takes two people to make a quarrel एक हाथ से ताली नहीं बजती।

(9) अनुवाद में कभी-कभी वाच्य-परिवर्तन भी किया जा सकता हैं। कर्मवाच्य का अनुवाद कर्त्तृवाच्य में और कर्त्तृवाच्य का अनुवाद कर्मवाच्य या भाववाच्य में भी हम कर सकते हैं। वाक्य-रचना में सुन्दरता और प्रवाह लाने के लिए हम ऐसा करते हैं।

उदाहरणार्थ- I am unable to walk- कर्त्तृवाच्य। मुझसे चला नहीं जाता- कर्मवाच्य।

He has been appointed as a clerk . उसकी नियुक्ति किरानी के पद पर हुई हैं।

(10) अनुवाद में प्रत्यक्ष वाक्य (Direct Speech) और परोक्ष वाक्य (Indirect Speech) में भी परस्पर परिवर्तन किये जा सकते हैं। ऐसा करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि हिन्दी में जब सरल वाक्य परोक्ष ढंग से लिखना होता है तब सर्वनाम, क्रिया या काल को बदलने की जरूरत नहीं होती, केवल 'कि'जोड़ देने से काम चल जाता हैं। अँग्रेजी में ऐसा नहीं होता। अतः छात्रों को परोक्ष वाक्य का अनुवाद करते समय विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए।

उदाहरणार्थ- प्रत्यक्ष वाक्य- राम ने कहा- मैं जाता हूँ। परोक्ष वाक्य- राम ने कहा कि मैं जाता हूँ। अँग्रेजी के परोक्ष कथन (Indirect Narration) का हिन्दी अनुवाद प्रत्यक्ष वाक्य में भी आसानी से किया जा सकता हैं; जैसे :- He said that he was going home and would return soon with his family .

इनका अनुवाद इस प्रकार किया जायेगा :- उन्होंने कहा, ''मैं घर जा रहा हूँ और शीघ्र ही सपरिवार लौटूँगा।'' एक और उदाहरण लीजिये :- My father asked me to be truthful and dutiful, otherwise I would not prosper in life . मेरे पिता ने कहा- ''तुम्हें सत्यवादी और कर्त्तव्यपरायण होना चाहिए, नहीं तो तुम जीवन में उन्नति न करोगे।''

हिन्दी में प्रत्यक्ष और परोक्ष वाक्यों के हिन्दी-अनुवाद में बड़ी गड़बड़ी दिखाई पड़ती हैं। प्रायः लोग अँग्रेजी की शैली का अंधानुकरण करते हैं। इसके बारे में श्रीयुत रामचन्द्र वर्मा ने ''अच्छी हिन्दी'' में लिखा हैं- ''अँग्रेजी व्याकरण में कथन के दो भेद किये गये हैं- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष। हमलोगों ने भी यह तत्त्व ग्रहण कर लिया हैं। यह हमारे लिए नितान्त निरर्थक तो नहीं हैं; कुछ अंशों में यह उपयोगी भी हैं और आवश्यक भी। पर बिना समझे-बूझे इनका प्रयोग नहीं होना चाहिए।

एक उदाहरण लीजिये- 'उन्होंने हुक्म दिया था कि उनके मकान के सामने रोज छिड़काव हुआ करे।' इस वाक्य में 'उनके' बहुत भ्रामक हैं। प्रत्यक्ष कथन के प्रकार में इसका रूप होगा- 'उन्होंने हुक्म दिया था- हमारे मकान के सामने रोज छिड़काव हुआ करे।' परन्तु यदि इसे अप्रत्यक्ष कथन वाला रूप दिया जाय तो भी हिन्दी की प्रकृति के अनुसार इसमें 'था' और 'हमारे' के बीच में केवल 'कि' आना चाहिए। 'हमारे' की जगह 'उनके' नहीं होना चाहिए।

अनुवाद के अभ्यास

अनुवाद का कार्य बड़ा कठिन हैं। इसके लिए दो भाषाओं का अच्छा ज्ञान होना आवश्यक हैं। अक्सर अँग्रेजी भाषा से अनुवाद के लिए अवतरण, विश्वविद्यालय के प्रश्न-पत्रों में, दिये जाते हैं। अँग्रेजी के प्रचलित और व्यावहारिक शब्दों की सूची हम दे चुके हैं। अनुवाद का अभ्यास करने के पहले विद्यार्थियों को इन शब्द-भांडारों का अध्ययन कर लेना चाहिए। यहाँ हम अँग्रेजी के कुछ अवतरण अभ्यास के लिए दे रहे हैं। परीक्षा-भवन में अनुवाद-कार्य करने के पहले इन अवतरणों का हिन्दी-अनुवाद कर लेना अपेक्षित होगा।

(1) The light has gone out, I said, and yet I was wrong . For the light that shone in this country was no ordinary light . The light that has illumined this country for these many years and a thousand years later, that light will still be seen in this country and the world will see it and it will give solace to innumerable hearts . For that light presented something more than the immediate present . It represented the living truth and the eternal man was with us with his eternal truth reminding us of the right path, drawing us from error, taking this ancient country to freedom .

संकेत :- Light- दीपक, प्रकाश। Gone out- बुझ गया। Wrong- भूल। Illumined- प्रकाशित किया। Solace- सांत्वना। Innumerable hearts- असंख्य लोगों। Immediate present- साम्प्रतिक वर्त्तमान। Eternal truth- शाश्वत सत्य। Right path- सत्पथ, सन्मार्ग।

(2) Last night was the sweetest night I ever had in my life . I never before enjoyed so much of the light and rest and sweetness of heaven in my soul . Part of the night I lay awake, and sometimes awake and sometimes between sleeping and waking . A glow of divine love came down from the heart of Christ in heaven to my heart in a constant stream . My heart and soul was lost in . It was a pleasure indescribable, a joy inexplicable . This glory of God seemed to overcome me and swallow me up . This love and this sweetness I can never forget .

संकेत :- Sweetest night- सुखदतम रात्रि। Light- प्रकाश। Rest-विश्राम। Sweetness of heaven- स्वर्गिक आनन्द। Lay awake- जगा रहना। Sleeping and awake- सुषुप्ति और जागरण। A glow of divine love- स्वर्गिक प्रेम की ज्योति। Constant stream- अजस्त्र स्रोत। Flowed out- निःसृत हुआ। Sweetness- सुख या आनन्द। Pleasure indescribable- अनिर्वचनीय आनन्द। Joy inexplicable- अव्याख्येय प्रसन्नता या सुख। Glory of God- ईश्वरीय गौरव। Overcome- प्रभावित करना।

  • Privacy Policy

अनुवाद की आवश्यकता एवं महत्व

अनुवाद की आवश्यकता, 1. राष्ट्रीय एकता में अनुवाद की आवश्यकता, 2. संस्कृति के विकास में अनुवाद की आवश्यकता , 3. साहित्य के अध्ययन में अनुवाद की आवश्यकता.

  • भारतीय साहित्य का अध्ययन।
  • अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य का अध्ययन।
  • तुलनात्मक साहित्य का अध्ययन।

4. व्यवसाय के रूप में अनुवाद की आवश्यकता

5. नव्यतम ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्रों में अनुवाद की आवश्यकता, अनुवाद का महत्व, 21वीं सदी में अनुवाद की महत्ता.

Very helpfull

very well explained

Excellent explanation

बहुत ही सार्थक

Nice sports 👍👍

Contact Form

HindiVyakran

  • नर्सरी निबंध
  • सूक्तिपरक निबंध
  • सामान्य निबंध
  • दीर्घ निबंध
  • संस्कृत निबंध
  • संस्कृत पत्र
  • संस्कृत व्याकरण
  • संस्कृत कविता
  • संस्कृत कहानियाँ
  • संस्कृत शब्दावली
  • पत्र लेखन
  • संवाद लेखन
  • जीवन परिचय
  • डायरी लेखन
  • वृत्तांत लेखन
  • सूचना लेखन
  • रिपोर्ट लेखन
  • विज्ञापन

Header$type=social_icons

  • commentsSystem

अनुवाद की अवधारणा स्पष्ट करें।

अनुवाद की अवधारणा - (1) संस्कृत साहित्य में अनुवाद की अवधारणा (2) अंग्रेजी साहित्य में अनुवाद की अवधारणा। अनुवाद शब्द "वद् " धातु से बना है, जिसका अर्

अनुवाद की अवधारणा स्पष्ट करें।

अनुवाद की अवधारणा - Anuvad ki Avadharna

  • संस्कृत साहित्य में अनुवाद की अवधारणा
  • अंग्रेजी साहित्य में अनुवाद की अवधारणा

अनुवाद शब्द "वद् " धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है "बोलना" या " कहना " " वद् " धातु में " धत्र्" प्रत्यय लगने से "वाद " शब्द बनता है और फिर उसमें "अनु " उपसर्ग जुड़ने से " अनुवाद " शब्द बना है।

आज "अनुवाद "का अर्थ भाषांतरण से लिया जाता है, लेकिन संस्कृत साहित्य में अनुवाद का आशय किसी बात को दोहराने या सप्रयोजन उसकी पुनरावृति करने से था। इसीलिए अनुवाद का अर्थ अनुवचन, अनुकथन, पुन: कथन और पुनरावृति लिया जाता था। इस प्रकार गुरूं के वचनों को शिष्यों द्वारा दोहराना, विद्यार्थियों द्वारा अपने एक साथी के बाद गिनती या पहाड़े बार-बार दोहराना, किसी नाट्य मंच पर किसी व्यिक्त दवारा पर्दे के पीछे से बोले गए संवादों को मंच पर किसी पात्र द्वारा दोहराना जैसी प्रक्रिया को अनुवाद कहते थे। कभी-कभी कम शिक्षित पात्र के अशुद्ध उच्चारण या कथन को शुद्ध रूप में उच्चारित करना भी अनवाद कहलाता था अथवा जटिल या कठिन शब्दों या वाक्यों को उसी भाषा में सरल करके प्रस्तुत करना भी अनुवाद कहलाता था। संस्कृत साहित्य में अनुवाद के बारे में जो अवधारणाएं मिलती हैं वे इस प्रकार हैं :

1. ऋग्वेद (2.13.3) अन्वेको वदति यद्ददाति।

यहां "अनु...वदति" का अर्थ है "दुहराता है" या "पीछे से कहता है"| ऋग्वेद में एक अन्य स्थान पर आया है -

2. पाणिनि की अष्टाध्यायी में भी "अनुवाद" शब्द का प्रयोग मिलता है --

अनुवादे चरणानाम् (2.4.3) इस सूत्र के "अनुवाद " शब्द की भट्टोज्रि दीक्षित व्याख्या करते हैं --

सिद्धस्य उपन्यासे 

3. जैमिनीय न्यायमाला (1.4.6) में आता है --

ज्ञातस्य कथनमनुवादः। 

अर्थात् ज्ञात का कथन अनुवाद है। 

4. मनुस्मृति के प्रसिद्ध टीकाकार कुल्लूक भट्ट (4.124 पर) कहते हैं -- 

सामगानश्रुतौ ऋग्यजुषोरनध्याय उक्तस्तस्यायमनुवादः ।

यहां भी "अनुवाद " का अर्थ "पुन:कथन " ही है। 

5. शब्दार्थ चिंतामणि

1. प्राप्तस्य पुन:कथनेऽनुवादः

(पहले कहे गए वचन का पुनर्कथन ही अनुवाद है।)

2. ज्ञातार्थस्य प्रतिपादने अनुवादः

(ज्ञात अर्थ का प्रतिपादन ही अनुवाद है।) 

ब्राह्मण ग्रन्थों वृहदारण्यक उपनिषद, यास्क के निरुक्त, न्यायसूत्र, न्यायदर्शन, जैमिनीय न्यायमाला में "दुबारा कहना " या "पुन: कथन " अर्थ में "अनुवाद " का प्रयोग मिलता है। इस प्रकार संस्कृत साहित्य में अनुवाद से तात्पर्य उसी भाषा में पुनर्कथन से है, भाषा बदलने से नहीं।

(ख) अंग्रेजी साहित्य में

Translation शब्द के मूल में फ्रांसीसी भाषा का शब्द Transferre है और लैटिन भाषा का शब्द Trans-latum शब्द से अंग्रेजी में Trans+lation शब्द बना है। Trans का अर्थ होता है - पार, lation का अर्थ होता है - ले जाना।

इस प्रकार Transferee/Translation शब्द का अर्थ है इस पार से उस पार ले जाना अर्थात् एक भाषा में व्यक्त विचारों को दूसरी भाषा में ले जाना। संभवत: इस शब्द के उद्गम का एक कारण यह भी रहा है कि संसार के सभी बड़े-बड़े नगर या बड़ी-बड़ी बस्तियाँ बड़ी-बड़ी नदियों के किनारे बसी हुई हैं। इसलिए नदी के इस पार वाले लोग जब नदी के उस पास जाते रहे होंगे तो वे इस प्रकार के शब्दों अभिव्यक्तियों आदि को इस पार से उस पार और उस पार से इस पार लाते होंगे इसलिए इसीलिए Translation=Translation शब्द का इन अर्थो में प्रयोग होता रहा होगा।

हालांकि जैसे बताया गया है कि हमारे संस्कृत साहित्य में अनुवाद से तात्पर्य उसी भाषा में पुन: कथन, पुन: बोलना और पुनरावृत्ति करना था, लेकिन बाद में भाषा बदलने अर्थात Translation शब्द के लिए हमने "अनुवाद" शब्द का प्रयोग करना आरंभ कर दिया है जो अब रूढ़ हो चुका है। आज अंग्रेजी के Translation शब्द का अर्थ अनुवाद ही हो गया है।

Translation consists in producing in the receptor language the closest natural equivalent to the message of the source language, first in meaning and second in style.

(स्रोत भाषा में कही गई बात को लक्ष्य भाषा में उसके सहज और निकटतम अर्थ देने वाले शब्दों दवारा व्यक्त करना अनवाद है परंत इसमें पहली प्राथमिकता अर्थ को और दसरी शैली को दी जानी चाहिए।) -Nida (नाइडा)

The action or process of turning from one language into another, also the product of this, a version in a different language.

(किसी एक भाषा के लेख एवं उसकी लेखन शैली को किसी दूसरी भाषा में अंतरित करने की क्रिया अथवा प्रक्रिया को अनुवाद कहते हैं।) - Oxford English Dictionary

The replacement of textual material in one language (SL) by equivalent textual material in another language (TL).

(किसी एक भाषा (स्रोत भाषा) की पाठ्य सामग्री को किसी दूसरी भाषा (लक्ष्य भाषा) में उसी रूप में रूपांतरित करने का नाम अनुवाद है।) - Catford

To translate is to change into another language retaining the sense.

(अनुवाद मूल के भावों की रक्षा करते है र उसे दूसरी भाषा में बदल देना है।)  - Samual Johnson

Translation is a mode of self-expression, it springs from a desire to instruct and to enrich literature.

एक भाषा में व्यक्त विचारों को यथासंभव समान और सहज अभिव्यक्तिद्वारा दूसरी भाषा में व्यक्त करने का प्रयास अनुवाद है। - डा. भोलानाथ तिवारी

A translation is perhaps the most direct form of commentary.

(अनुवाद संभवत: टिप्पणी का सर्वाधिक प्रत्यक्ष रूप है।) - रोजेटी

Translation is unification of cultural contexts. 

अनुवाद, सांस्कृतिक संदर्भो का एकीकरण है। -  सुविख्यात समाजशास्त्री मलिनॉस्की

अनुवाद एक प्रकार से दो संस्कृतियों के बीच सांस्कृतिक सेतु का महत कार्य करता है। - प्रो. गोपीनाथन

अनुवाद भाषाओं की नहीं प्रत्युत संस्कृतियों की अदला-बदली है। - जे.बी. कांसाग्रांदे

एक भाषा के प्रतीकों के स्थान पर दूसरी भाषा के निकटतम समतुल्य और सहज प्रतीकों का प्रयोग ही अनुवाद है। - एफ. ग्रीन

समस्त अभिव्यक्ति अनुवाद है, क्योंकि वह अव्यक्त को भाषा में प्रस्तुत करती है। - अज्ञेय

Related Article : 

अनुवाद की व्युत्पत्ति, अर्थ एवं परिभाषा अनुवाद के सिद्धांत की विवेचना करें कार्यालयी अनुवाद पर टिप्पणी सारानुवाद और भावानुवाद में अंतर बताइये सारानुवाद का स्वरूप, अर्थ और विशेषताएं अनुवाद की आवश्यकता और सिद्धांत अनुवाद की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए भाषा का अर्थ एवं प्रकृति तथा विशेषताएँ.

Twitter

100+ Social Counters$type=social_counter

  • fixedSidebar
  • showMoreText

/gi-clock-o/ WEEK TRENDING$type=list

  • गम् धातु के रूप संस्कृत में – Gam Dhatu Roop In Sanskrit गम् धातु के रूप संस्कृत में – Gam Dhatu Roop In Sanskrit यहां पढ़ें गम् धातु रूप के पांचो लकार संस्कृत भाषा में। गम् धातु का अर्थ होता है जा...
  • दो मित्रों के बीच परीक्षा को लेकर संवाद - Do Mitro ke Beech Pariksha Ko Lekar Samvad Lekhan दो मित्रों के बीच परीक्षा को लेकर संवाद लेखन : In This article, We are providing दो मित्रों के बीच परीक्षा को लेकर संवाद , परीक्षा की तैयार...

' border=

RECENT WITH THUMBS$type=blogging$m=0$cate=0$sn=0$rm=0$c=4$va=0

  • 10 line essay
  • 10 Lines in Gujarati
  • Aapka Bunty
  • Aarti Sangrah
  • Akbar Birbal
  • anuched lekhan
  • asprishyata
  • Bahu ki Vida
  • Bengali Essays
  • Bengali Letters
  • bengali stories
  • best hindi poem
  • Bhagat ki Gat
  • Bhagwati Charan Varma
  • Bhishma Shahni
  • Bhor ka Tara
  • Boodhi Kaki
  • Chandradhar Sharma Guleri
  • charitra chitran
  • Chief ki Daawat
  • Chini Feriwala
  • chitralekha
  • Chota jadugar
  • Claim Kahani
  • Dairy Lekhan
  • Daroga Amichand
  • deshbhkati poem
  • Dharmaveer Bharti
  • Dharmveer Bharti
  • Diary Lekhan
  • Do Bailon ki Katha
  • Dushyant Kumar
  • Eidgah Kahani
  • Essay on Animals
  • festival poems
  • French Essays
  • funny hindi poem
  • funny hindi story
  • German essays
  • Gujarati Nibandh
  • gujarati patra
  • Guliki Banno
  • Gulli Danda Kahani
  • Haar ki Jeet
  • Harishankar Parsai
  • hindi grammar
  • hindi motivational story
  • hindi poem for kids
  • hindi poems
  • hindi rhyms
  • hindi short poems
  • hindi stories with moral
  • Information
  • Jagdish Chandra Mathur
  • Jahirat Lekhan
  • jainendra Kumar
  • jatak story
  • Jayshankar Prasad
  • Jeep par Sawar Illian
  • jivan parichay
  • Kashinath Singh
  • kavita in hindi
  • Kedarnath Agrawal
  • Khoyi Hui Dishayen
  • Kya Pooja Kya Archan Re Kavita
  • Madhur madhur mere deepak jal
  • Mahadevi Varma
  • Mahanagar Ki Maithili
  • Main Haar Gayi
  • Maithilisharan Gupt
  • Majboori Kahani
  • malayalam essay
  • malayalam letter
  • malayalam speech
  • malayalam words
  • Mannu Bhandari
  • Marathi Kathapurti Lekhan
  • Marathi Nibandh
  • Marathi Patra
  • Marathi Samvad
  • marathi vritant lekhan
  • Mohan Rakesh
  • Mohandas Naimishrai
  • MOTHERS DAY POEM
  • Narendra Sharma
  • Nasha Kahani
  • Neeli Jheel
  • nursery rhymes
  • odia letters
  • Panch Parmeshwar
  • panchtantra
  • Parinde Kahani
  • Paryayvachi Shabd
  • Poos ki Raat
  • Portuguese Essays
  • Punjabi Essays
  • Punjabi Letters
  • Punjabi Poems
  • Raja Nirbansiya
  • Rajendra yadav
  • Rakh Kahani
  • Ramesh Bakshi
  • Ramvriksh Benipuri
  • Rani Ma ka Chabutra
  • Russian Essays
  • Sadgati Kahani
  • samvad lekhan
  • Samvad yojna
  • Samvidhanvad
  • Sandesh Lekhan
  • sanskrit biography
  • Sanskrit Dialogue Writing
  • sanskrit essay
  • sanskrit grammar
  • sanskrit patra
  • Sanskrit Poem
  • sanskrit story
  • Sanskrit words
  • Sara Akash Upanyas
  • Savitri Number 2
  • Shankar Puntambekar
  • Sharad Joshi
  • Shatranj Ke Khiladi
  • short essay
  • spanish essays
  • Striling-Pulling
  • Subhadra Kumari Chauhan
  • Subhan Khan
  • Suchana Lekhan
  • Sudha Arora
  • Sukh Kahani
  • suktiparak nibandh
  • Suryakant Tripathi Nirala
  • Swarg aur Prithvi
  • Tasveer Kahani
  • Telugu Stories
  • UPSC Essays
  • Usne Kaha Tha
  • Vinod Rastogi
  • Vrutant lekhan
  • Wahi ki Wahi Baat
  • Yahi Sach Hai kahani
  • Yoddha Kahani
  • Zaheer Qureshi
  • कहानी लेखन
  • कहानी सारांश
  • तेनालीराम
  • मेरी माँ
  • लोककथा
  • शिकायती पत्र
  • हजारी प्रसाद द्विवेदी जी
  • हिंदी कहानी

RECENT$type=list-tab$date=0$au=0$c=5

Replies$type=list-tab$com=0$c=4$src=recent-comments, random$type=list-tab$date=0$au=0$c=5$src=random-posts, /gi-fire/ year popular$type=one.

  • अध्यापक और छात्र के बीच संवाद लेखन - Adhyapak aur Chatra ke Bich Samvad Lekhan अध्यापक और छात्र के बीच संवाद लेखन : In This article, We are providing अध्यापक और विद्यार्थी के बीच संवाद लेखन and Adhyapak aur Chatra ke ...

' border=

Join with us

Footer Logo

Footer Social$type=social_icons

  • loadMorePosts

ePustakalay

अनुवाद विज्ञान | Anuvad Vigyan

Anuvad Vigyan by डॉ. भोलानाथ तिवारी - Dr. Bholanaath Tiwari

-->